Post Title. 07/10/2011
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जिन्दगी-भर को ......
भीड़ में, कोई किसी को, रास्ता नहीं देता
जैसे तिनका, डूबते को, आसरा नहीं देता
कहाँ ले जाओगे, अपनी उखड़ी-उखड़ी सासें
कोई बीमार को ,तसल्ली- भर हवा नहीं देता
पल दो पल को, मिल जाए, शायद तुम्हे हंसी
जिन्दगी-भर को ,मुस्कान, मसखरा नहीं देता
मै चाहता हूँ ,उतार दूँ सब, गुनाहों के नकाब
ऊपर-वाला, मुनासिब मगर, चेहरा नहीं देता
कुरेद कर चल देते ,ये जख्म शहर के लोग
चारागर बन के, मुफीद , कोई दवा नहीं देता
कल की कुछ, धुंधली, तस्वीर बनी रहती है
आज का अक्स संवार के आईना नहीं देता
उससे मिल कर, जुदा हुए, बरसो बीत गए
मेरे सुकून का, कोई ठिकाना, पता नहीँ देता
सुशील यादव .....०९४२६७६४५५२
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जिन्दगी-भर को ......
भीड़ में, कोई किसी को, रास्ता नहीं देता
जैसे तिनका, डूबते को, आसरा नहीं देता
कहाँ ले जाओगे, अपनी उखड़ी-उखड़ी सासें
कोई बीमार को ,तसल्ली- भर हवा नहीं देता
पल दो पल को, मिल जाए, शायद तुम्हे हंसी
जिन्दगी-भर को ,मुस्कान, मसखरा नहीं देता
मै चाहता हूँ ,उतार दूँ सब, गुनाहों के नकाब
ऊपर-वाला, मुनासिब मगर, चेहरा नहीं देता
कुरेद कर चल देते ,ये जख्म शहर के लोग
चारागर बन के, मुफीद , कोई दवा नहीं देता
कल की कुछ, धुंधली, तस्वीर बनी रहती है
आज का अक्स संवार के आईना नहीं देता
उससे मिल कर, जुदा हुए, बरसो बीत गए
मेरे सुकून का, कोई ठिकाना, पता नहीँ देता
सुशील यादव .....०९४२६७६४५५२